भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक अजनबी के लिए ख़त / निकानोर पार्रा
Kavita Kosh से
|
जब गुज़र जाएँगे साल,
साल जब गुज़र जाएँगे और
हवा बना चुकी होगी एक दरार
मेरे और तुम्हारे दिलों के बीच;
जब गुज़र जाएँगे साल और रह जाऊँगा मैं
सिर्फ़ एक आदमी जिसने मोहब्बत की,
एक नाचीज जो एक पल के लिए
तुम्हारे होठों का क़ैदी रहा,
बाग़ों में चलकर थक चुका एक बेचारा इंसान मैं,
पर कहाँ होगी तुम?
ओ, मेरे चुंबनों से रची-बसी मेरी गुड़िया!
तुम कहाँ होगी?
मूल स्पानी भाषा से अनुवाद : श्रीकान्त