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एक खुशबू रातरानी हो गयी / रंजना वर्मा
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एक खुशबू रातरानी हो गयी।
देख लो पुरवा सुहानी हो गयी॥
घेर कर बादल बरसने फिर लगे
लो धरा की चुनर धानी हो गयी॥
हर लहर उठने लगे जब ज्वार सी
तब समझ लेना जवानी हो गयी॥
जीर्ण पन्ने पीत वर्णी हो गये
डायरी अब तो पुरानी हो गयी॥
लोग बीती बात हर देते भुला
जिंदगी जैसे कहानी हो गयी॥
छेड़ने बादल गगन में आ गये
खेत क्यारी पानी-पानी हो गयी॥
राह कोई भी समझ आती नहीं
हर गली जैसे अजानी हो गयी॥