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एक नमन् जीवट को / मुकेश निर्विकार

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हाँ तुम्हीं!
तुम्हीं तो हो
मेरी कथा के
असल नायक!
मेरे हीरो! मेरे आदर्श!
मेरी सद्दप्रेरणा
मेरे जीवन-स्रोत!

बनाए हुए हूँ मैं
तुम्हारे ही जीवट से
अपनी जिजीविषा
इस आत्मघाती दौर में!

हारते नहीं हो तुम
लड़ाई जीवन की
आसानी से
होता नहीं हावी/कभी
तुम्हारे ऊपर
बुर्जूआ अवसाद!
करते नहीं तुम/कभी
जीवन भीरू बन
आत्महत्या!

बल्कि,
रहते हो जीवित
सदा
अपनी अंतिम साँस तक!

अरे!
सुनकर यह सब
आँखे विस्फारित
मत करो अपनी!

बिलकुल सच
कह रहा हूँ मैं!
मेरा यकीन करो-

हाँ तुम्हीं हो,
मेरी जीवन गाथा के
असल यौद्धा!
भले ही तुम चलाते हो रिक्शा,
लगाते हो ठेला,
करते हो मेहनत-मजूरी
कसला चलाकर
लेकिन तुम
जिंदगी से
दो-दो हाथ करते हो।

करता हूँ मैं नमन्
तुम्हारे अदम्य जीवट को
और करता होगा गर्व
ईश्वर भी/अवश्य
तुम्हारे ऊपर

क्योंकि तुम/पूरा ऐतवार करते हो/उस पर!
जब भेजता है वह/तुम्हारी मौत,
तुम केवल/तभी मरते हो
लेकिन तब तक/ तुम
सिर्फ लड़ते हो.....
सिर्फ लड़ते हो.....
सिर्फ लड़ते हो.....