एक नवधनाढ्य से मुलाक़ात / ब्रजेश कृष्ण
नयी अर्थव्यवस्था, राजनीति और तिकड़म ने
उसे भी दिया था एक मौक़ा
ऊँची छलाँग का
और वह हो गया था
दूसरी तरफ़ का आदमी
दूसरी तरफ़ के आदमी हैं बहुत थोड़े
मगर छाये हैं पूरी दुनियाँ पर
हम जानते हैं कि दुनियाँ की
इस हालत का कारण हैं वे
मगर वे मानते हैं
कि यह दुनियाँ ऐसी ही रहेगी
क्योंकि दुनियाँ के अधिकतर लोग
उनकी नज़र में
काहिल, आलसी और कामचोर हैं
उस तरफ़ के उस आदमी ने
जिसे मैं जानता हूँ
पर्यटन उद्योग पकड़ा
और बन गया बादशाह
वह जानता है पैसे का जादू
उसे पता है कि इसका क्या करे
कहाँ खरचे कहाँ फूँके
वह किसी तलाश में था
और आया मेरे शहर में
तुम्हारा यह शहर
कहा उसने कि-
महाभारत को पीठ पर लादे हाँफ रहा है
अनन्त संभावनाएँ हैं इस शहर में
बस, ‘कृष्णा’ और ‘योगा’ को
‘एक्सप्लायट’ करने की ज़रूरत है
पर्यटक को चाहिए
ऐशो-आराम के सभी साधन
मैं इस शहर के पंख लगा सकता हूँ
मैंने कहा कि यह शहर
सदियों से एक तीर्थ है
लाखों लोग अपनी भावना
आस्था और विश्वास की
गठरी लिए यहाँ आते हैं
उन्हें प्यारा है यह शहर
इसी रूप में
सब कुछ किया जा सकता है
मैं बदल सकता हूँ लोगों को
उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा
और हँसा
मैं उसके कथन से नहीं
हँसी से डरा।