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एक परी अपने घर में / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

हम छोटे थे
तब रहती थी एक परी अपने घर में
 
सबसे ऊपर वाली छत पर
था उसका कमरा
माँ कहती थी -
एक राक्षस ने है उसे वरा
 
वह रोई थी
और सुबह थी ओस झरी अपने घर में
 
ख़ुशबू कभी-कभी आती थी
नीचे आँगन तक
उसकी हँसी देखते थे हम
सपने में औचक
 
और दूसरे दिन
मिलती थी धूप भरी अपने घर में
 
कुछ दिन बीते
सुना, परी को राक्षस ने खाया
और तभी से
छत वाला कमरा भी बौराया
 
एक घनी परछाईं
है तबसे पसरी अपने घर में