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एक बार बह जाता है जो जल साथी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
एक बार बह जाता है जब जल साथी।
जाता है वह जाने कहाँ निकल साथी॥
उगते सूरज जैसे ये जीवन के पल
इक दिन जायेंगे सन्ध्या में ढल साथी॥
दुख न करो ग़म की चट्टानों पर चढ़ कर
अमर प्यार कंचन का लगे महल साथी॥
अगर साथ तुम रहे अंत तक मेरे तो
जायेगी यह निठुर मौत भी टल साथी॥
जो बटोर लाता है कई दुआओं को
साथ हमेशा रहता है वह पल साथी॥
पल पल रंग बदलती रहती है दुनियाँ
मौसम से मत जाना कभी बदल साथी॥
है कामना रसीली रपटीली राहें
जाता है हर कोई यहाँ फिसल साथी॥