भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक सत्य जो परम तव परमात्मा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भैरव-ताल त्रिताल)
एक सत्य जो परम तव परमात्मा ब्रह्मा ईश भगवान्‌।
 निर्गुण-गुणसह-निराकार, साकार-सगुण, सब भाँति महान्‌॥
 नित्य, सच्चिदानन्द, सर्वमय, सर्वातीत, सर्व-‌आधार।
 विष्णु, सूर्य, दुर्गा, शिव, गणपति, राम-कृञ्ष्ण अवतार-‌उदार॥
 अर्हत्‌‌, बुद्ध, पिता ईसाके, अहुरमज्द, अल्लाह, प्रधान।
 प्रकृञ्ति, नियम, अणु, महत्‌‌, कर्म, कर्ता, अव्यक्त, स्वरूप-ज्ञान॥
 सभी प्राणियोंमें विभक्त-से जो प्रतीत होते ‘अविभक्त’।
 वही उपास्य, उपासित होते विविध रूपमें हो अभिव्यक्त॥