Last modified on 11 जुलाई 2016, at 09:25

एक सागर है यहाँ भी / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

भाई मानें, एक सागर है यहाँ भी
 
हाँ, हमारी आँख में यह
युगों से लहरा रहा है
साँस की हर यातना में
ज्वार बनकर यह बहा है
 
डूबने का जो वहाँ, डर है यहाँ भी
 
शांत होता - तब इसी में
चाँद-सूरज डोलते हैं
कभी वंशी, कभी तुरही-नाद
इसमें बोलते हैं
 
अक्स-बन-तिरता दुआघर है यहाँ भी
 
कोख में इस सिंधु के भी
एक आदिम आग दहती
और सदियों से रही जो प्यास
उसकी कथा कहती
 
याचना जो वहाँ पर, है यहाँ भी