भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐंठूराम / प्रेमशंकर रघुवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने को ही ख़ुदा समझता ऐंठूराम
अपनी ही परकम्मा करता ऐंठूराम !

आश्रय दो तो हक्क जमाए ऐंठूराम
करो भरोसा घात लगाए ऐंठूराम !

प्यार करे तो दगा करे है ऐंठूराम
समझाओ तो मूरख समझे ऐंठूराम !

दुख में दर-दर नाक रगड़ता ऐंठूराम
सुख में सबकी नाक काटता ऐंठूराम !

आदर दो तो धता बताए ऐंठूराम
करो क्षमा तो निर्बल समझे ऐंठूराम !

दिल-दिमाग दोनों से खारिज ऐंठूराम
दुनिया भर को मूरख समझे ऐंठूराम !

अपने ही मुँह मिट्ठू बनता ऐंठूराम
गरज पड़े तो घुटने टेके ऐंठूराम !

माँ को माँ कहने से झिझके ऐंठूराम
बापों का भी बाप बने है ऐंठूराम !

उस्तादों को लात मारता ऐंठूराम
मक्कारों की लात चूमता ऐंठूराम !