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ऐसे इंसां कम ही मिलते हैं हमें संसार में / सिया सचदेव

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ऐसे इंसां कम ही मिलते हैं हमें संसार में
जो बिताएँ ज़िंदगी का लम्हा लम्हा प्यार में

क्या बताएँ हिज्र की शब किस तरह से की बसर
करवटें लेते रहे शब भर फ़िराक़े यार में

क्या करूँ अब उसके पीछे पीछे चलना है मुझे
मेरा बेटा मुझ से आगे बढ़ गया रफ़्तार में

तेरा ईमाँ ऐ बशर इक क़ीमती सामान था
चंद सिक्कों के लिए बेचा जिसे बाज़ार में

इश्क़ वाले ऐ सिया कब इश्क़ से बाज़ आयेंगे
कोई राजा लाख चुनवाए उन्हें दीवार में