भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐ दिल इस का तुझे अंदाज़-ए-सुख़न याद नहीं / 'रशीद' रामपुरी
Kavita Kosh से
ऐ दिल इस का तुझे अंदाज़-ए-सुख़न याद नहीं
वो फिरी आँख वो माथे की शिकन याद नहीं
क़ैद-ए-सय्याद में जब से हूँ चमन याद नहीं
दोस्त हैं अहल-ए-क़फ़स अहल-ए-वतन याद नहीं
हिज्र में दिल के हमें दाग़-ए-कुहन याद नहीं
मुस्कुराते हुए फूलों का चमन याद नहीं
वो ख़ुनुक चांदनी रातें वो फ़ज़ा आप और मैं
और वादे वो लब-ए-गंगा-ओ-जमन याद नहीं
मैं वो ना-काम मुसाफ़िर हूँ जहाँ में जिस को
शाम-ए-ग़ुर्बत के सिवा सुब्ह-ए-वतन याद नहीं
आरजू दोस्त की बेकार है ग़ुर्बत में ‘रशीद’
आप को हालत-ए-यारान-ए-वतन याद नहीं