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ऐ प्यासे दिल बेजुबाँ, ले जाऊँ तुझको कहाँ / शैलेन्द्र

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ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां तुझको ले ज़ाउं कहाँ
आग को आग में ढाल के कब तक जी बहलायेगा
ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां...

घटा झुकी और हवा चली तो हमने किसी को याद किया
चाहत के वीराने को उनके गम से आबाद किया
ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां मौसम की ये मस्तियां
आग को आग में ढाल के कब तक जी बहलयेगा
ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां...

तारे नहीं अंगारे हैं वो अब चाँद भी जैसे जलता है
नींद कहाँ सीने पे कोई भारी कदमों से चलता है
ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां दर्द है तेरी दास्तां आ ...
आग को आग में ढाल के कब तक जी बहलयेगा
ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां...

कहाँ वो दिन अब कहाँ वो रातें तुम रुठे क़िस्मत रुठी
गैर से भेद छुपाने को हम हंसते फिरे हंसी झुठी
ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां लुट के रहा तेरा जहां
आग को आग में ढाल के कब तक जी बहलायेगा
ऐ प्यासे दिल बेज़ुबां...