ओ पंद्रह अगस्त! मेरे उत्तर? / ईश्वर करुण
ओ पंद्रह अगस्त!
स्वाधीनता से मिली
अस्मिता और पहचान
हमने तुममें सामो दिये
उलीच डाला अपना
सर्वस्व तुम्हारे लिये
सारे प्रश्न, सारे उत्तर
कर दिये तुम्हें समर्पित
किन्तु आज
तुम मेरे उत्तर लौटा दो
क्योंकि मेरे सामने ‘प्रश्न’ है
प्रश्न प्रतिष्ठा का नहीं
प्रश्न रोजी रोटी का भी नहीं
और न अस्तित्व का ही है
बल्कि प्रश्न है – हमारी अस्मिता का.
ओ पंद्रह अगस्त !
राष्ट्र का धृतराष्ट्र
कितना विवश खड़ा है!
कौरवी सेना लिये
कितने-कितने मोर्चों पर
दुर्योधन अड़ा है।
कहीं रावणी अट्टाहास है
तो कहीं रक्त बीजी प्यास
हम स्वतंत्र तो हैं
रहेंगे भी
किन्तु मेरी अस्मिता को
परतंत्र बनाने का
जो षड्यंत्र है
हम उससे उबरना चाहते हैं
राम-कृष्ण-दुर्गा
या हजरत या ईसा के
भरोसे नहीं
अपनी उन्हीं उत्तरों के भरोसे
जिसे हमने ही तुम्हें
वर्षों पहले सौंपे थे
ओ पंद्रह अगस्त!
तुम मेरे उत्तर लौटा दो,
बस उत्तर लौटा दो.