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ओ री, आम्र मंजरी, ओ री, आम्र मंजरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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ओ मंजरी, ओ मंजरी, आमेर मंजरी
आज हृदय तोमार उदास हये पड़छे कि झरि।

ओ री, आम्र मंजरी, ओ री, आम्र मंजरी
क्या हुआ उदास हृदय क्यों झरी ।।
गंध में तुम्हारी धुला मेरा गान
दिशि-दिशि में गूँज उसी की तिरी ।।
डाल-डाल उतरी है पूर्णिमा,
गंध में तुम्हारी, मिली आज चन्द्रिमा ।।
दौड़ रही पागल हो दखिन वातास,
तोड़ रही अर्गला,
इधर गई, उधर गई,
चहुँदिश है वो फिरी ।।

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 43 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)