भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरतें / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
धुन्धलके में ही रहती आईं औरतें
धुन्धली धुन्धली
यादों की तरह
यादों के धुन्धलके में रहती हैं औरतें
औरतें यादों की तरह बची रहना चाहती हैं
दुनिया में
औरतें पीठ पर लादे रोशनी
धुन्धलके में क्यों रहना चाहती हैं