भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और भी हो गए बेगाना वो ग़फ़लत करके / हसरत मोहानी
Kavita Kosh से
और भी हो गए बेग़ाना वो गफ़लत करके
आज़माया जो उन्हें तर्के-मुहब्बत<ref >प्रेम का परित्याग</ref> करके
दिल ने छोड़ा है न छोड़े तेरे मिलने का ख़याल
बारहा<ref >कई बार</ref> देख लिया हमने मलामत<ref>निन्दा</ref> करके
रुह ने पाई है तकलीफ़े-जुदाई से निजात<ref >छुटकारा</ref>
आपकी याद को सरमाया-ए-राहत<ref >आराम की पूँजी,</ref> करके
छेड़ से अब वो ये कहते हैं कि सँभलो 'हसरत'
सब्रो-ताबे-दिल-बीमार<ref >प्रेमी हृदय की शक्ति और शान्ति</ref> को ग़ारत<ref>मिटा कर</ref> करके
शब्दार्थ
<references/>