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कजली / 57 / प्रेमघन

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अद्धा

पाये भल बा ये रंग लाल रे करँवदा।
नाहीं ओस जेस दूऔ गाल रे करँवदा॥
ओठ लखि बिकल प्रबाल रे करँवदा।
कुनरूगिरल खसि डाल रे करँवदा।
कुनरू गिरल खसि डाल रे करँवदा॥
देखि देखि नैनन कै हाल रे करँवदा॥
कँबल बुड़ल बिच ताल रे करँवदा॥
लखि अँटखेलिन कीचाल रे करँवदा॥
लजि लजि भजलैं मराल रे करँवदा॥
निरखत भुजन बिसाल रे करँवदा।
कीच बीच घुसल मृनाल रे करँवदा॥
देखि देखि ठोढ़िया कै ढाल रे करँवदा।
पकि चुइ परल रसाल रे करँवदा॥
लखि कुच कठिन कमाल रे करँवदा।
दाड़िमहुँ भयल हलाल रे करँवदा॥
ससि पर आयल जयाल रे करँवदा।
लखि भल चमकत भाल रे करँवदा॥
प्रेमघन घन अलि नाल रे करँवदा।
लाजे लखि घुँघराले बालरे करँवदा॥103॥