भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कजली 1 / प्रेमघन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गलियाँ की गलियाँ रतियाँ घूमै देउआ बनियाँ रामा।
हरि हरि चम्बू बम्बू पीए बा बौराना रे हरी।
मम्मी खाँ का ख्याल गावत चिल्लाता है बहुतै रामा।
हरि हरि भेजा जल्दी उसको पागलखाना रे हरी॥