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कठघरे में कुदरत / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
होतीं हैं
हर रोज
नृशंस हत्याय
बेबसों की,
कमजोर
हर दिन
सताये जाते हैं|
जला दी जाती हैं
दहेज कि खातिर
बहुएँ आये दिन
अनाथ हो रहें हैं
दुधमुहें मासूम बच्चे
कुदरत के किसी
अदृश्य
विधान के चलते |
जन्मांध पैदा हुआ बच्चा
जानता तक नहीं
कतई
अपने अपराध को
और
न ही जान सकेगा
कभी
ज़िंदगी-भर
असंख्य अन्य जीवों कि तरह |
“कुदरत परम न्यायकारी है’’- बतलाया गया मुझे
हर बार,
मगर
इन निरपराधों के अपराध
किसी ने नहीं बताए कभी!