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कथा कठिन इस घर की / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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घने अँधेरे में डूबा घर
और घड़ी दुपहर की
केशव कथा कठिन इस घर की
कुछ दिन पहले ही आई थी
यहाँ सुनहली हंसी
और बजी थी नदी-किनारे
नई भोर की बंसी
करते हम तुम उसी समय की
बातें बुरी नज़र की
केशव कथा कठिन इस घर की
विकट पहेली -
दरवाजे इस घर के बंद पड़े हैं
और लोग छत पर
सपनों के नक्शे लीये खड़े हैं
जितने भी हैं शाह शहर के
कहते हैं बेपर की
केशव कथा कठिन इस घर की
जो घर के, वे भी बाहर के
कैसा स्वाँग हुआ है
अक्षर-अक्षर पूजाघर की
उलटी हुई दुआ है
हर कमरे में नाग पले हैं
बात यही है डर की
केशव कथा कठिन इस घर की