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कदँब-बृच्छ-छाया सुखद राजत / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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कदँब-बृच्छ-छाया सुखद राजत स्यामा-स्याम।
करत परसपर रुचिर मधु बिबिध बिनोद ललाम॥
खेलत-खेलत ही ल‌ई राधा मुरलि छिपाय।
लाडिलि की लीला ललित समुझे स्याम सुभाय॥
छिपे तुरत, राधा बिकल, बिरहाकुल गंभीर।
ठाढ़ी भरे बिषाद मन, रस-सागरके तीर॥
औचक कहँ प्रियतम ग‌ए, चिंता चिा अपार।
भ्रकुटि कुटिल भ‌इ मान-बस, मगन बिचित्र बिचार॥