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कब चला जाता है ‘शहपर’ कोई आ के सामने / 'शहपर' रसूल
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कब चला जाता है ‘शहपर’ कोई आ के सामने
सूई का गिरना भी क्या आवाज़-ए-पा के सामने
रोज़ बे-मक़सद ख़ुशामद क़त्ल करती है उसे
रोज़ मर जाता है वो अपनी अना के सामने
कर्ब की मासूम लहरें तेज़ तर होने लगीं
रख दिया किस ने चराग़-ए-दिल हवा के सामने
क़ल्ब की गहराइयों में सिर्फ़ तेरा अक्स है
देख ले क्या कह रहा हूँ मैं ख़ुदा के सामने
रोज़ कोई आस भर जाती है इन में रंग-ए-यास
रोज़ रख लेता हूँ मैं ख़ाके बना के सामने
दूसरों के ज़ख़्म बुन कर ओढ़ना आसाँ नहीं
सब क़बाएँ हेच हैं मेरी रिदा के सामने