भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कब तक / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक घाव दो घाव तीन घाव
कितने घाव

एक अपशब्द दो अपशब्द तीन अपशब्द
कितने अपशब्द

एक व्यंग्य दो व्यंग्य तीन व्यंग्य
कितने व्यंग्य कितना अपमान

आखिर कब तक

क्या तुम्हारे जैसी न हो जाऊँ तब तक?