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कब ये अपनी हुई हरदम है परायी दुनियाँ / रंजना वर्मा

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कब ये अपनी हुई हरदम है परायी दुनियाँ
क्या कहें हमको कभी रास न आई दुनियाँ

चैन मिलता नहीं सब लोग सुकूँ को तरसे
जाने किस वास्ते रब ने है बनाई दुनियाँ

हर कदम साथ दिया हमने ज़माने का मगर
मेरे ग़म में है कभी साथ न आयी दुनियाँ

हम भटकते ही रहे उम्र कटी राहों पर
जिनको मंजिल मिली उनको ही सुहायी दुनियाँ

लोग दुनियाँ को बताते रहे जन्नत से हसीं
दिलजले ने है किसी जल के जलायी दुनियाँ

जन्म पाया जहाँ माहौल में जिस साँसें लीं
बेटियों की हुई पल में वो परायी दुनियाँ

एक दिन हमको कलेजे से लगाया जिसने
अब वही देगी कभी हमको विदाई दुनियाँ