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कब से पुकारती है तुमको तुम्हारी दुनिया / मृदुला झा
Kavita Kosh से
कब से पुकारती है तुमको तुम्हारी दुनिया,
क्यों बेरहम बने हो देखो ये प्यारी दुनिया।
रूठे रहोगे कब तक अपनों से मुँह छुपाकर,
सब छोड़ के तू आजा ये है तुम्हारी दुनिया।
जीवन के इस सफर में साथी मिले हजारों,
पर साथ चल न पाये विरहा की मारी दुनिया।
दिल हो गया है तनहा अपनों को खोते-खोते,
कितने सवाल पूछे दुख की पिटारी दुनिया।
जी भर गया हमारा अपनों की राह तकते,
तुम ही इसे सम्हालो तेरी दुधारी दुनिया।