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कभी जब पीर ने तुम को छुआ होगा / रंजना वर्मा

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कभी जब पीर ने तुम को छुआ होगा
तुम्हारी आंख से आँसू बहा होगा

नदी पर्वत शिखर से जब उतर आयी
हृदय में उसके भी कुछ तो रहा होगा

जहाँ पर है अरण्डी-पौध भी ऊँची
वहाँ पर जंगलों से फ़ासला होगा

नमक में डूबना कब चाहता कोई
नदी का अपना कोई मुद्दआ होगा

गिरी हैं राह में जो चंद पंखुड़ियाँ
किसी ने प्यार से सजदा किया होगा

बुरा हो वक्त सब मुँह फेर हैं लेते
किसी ने तो करम उस पर किया होगा

गयी इज़्ज़त बचाना कब हुआ आसां
बड़ी मुश्किल से दामन को सिया होगा