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कभी जब रात आधी साँवरा वंशी बजाता है / रंजना वर्मा
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कभी जब रात आधी साँवरा वंशी बजाता है।
बिना बोले कुमारी गोपियों के दिल चुराता है।।
नहीं समझा कभी कोई दृगों का श्याम के जादू
धनुष सी भौंह तिरछी कर कटारी सी चलाता है।।
बड़ा अलमस्त ग्वाला है चराता गाय बछड़ों को
बजाते गोप - गण तबला मधुर वह गीत गाता है।।
कभी राधा कभी ललिता कभी कोई कभी कोई
किसी की फोड़ता मटकी कहीं गगरी गिराता है।।
न जाने कब सुनेगा साँवरा अब टेर इस दिल की
पुकारूँ मैं विकल हो कर सदा नजरें चुराता है।।
हृदय नवनीत लेकर फिर रही कब से अकेली मैं
अगर नजदीक जाती हूँ वो मुझसे दूर जाता है।।
चला आ श्याम अब घिरने लगा है घोर तम भी तो
इधर दम टूटता मेरा उधर तू मुस्कुराता है।।