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करत निज कर प्रीतम श्रृंगार / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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करत निज कर प्रीतम श्रृंगार।
सुबरन-बरन सु-तन पहिरायो नील बसन करि मधु मनुहार॥
कला-कलित कंचुकि पहिरा‌ई, रतन-हार, मनि-मुक्ता-माल।
दिय आभरन अन्य सकल अंगनि पहिरा‌ए बिबिध रसाल॥
सुरभित सुमन दिय चुनि निज कर, गूँथि गले पहिरायौ हार।
नयननि सावधान अति आँज्यौ अंजन कोमल अँगुरिन-सार॥
माँग सिंदूर दे‌इ मनभावन, रची सुमन-बेनी रमनीय।
बेंदी भाल लगा‌इ मनोहर, पहिरा‌ए कुंडल कमनीय॥
पुष्पसार लै मधुर सुगंधित दियौ लगाय प्रिया सुचि अंग।
दै तांबूल सुबासित मुख, दृग अपलक निरखत अँग-प्रत्यंग॥
करने लगे प्रिया-सँग प्रमुदित स्मित-मुख मधुमय रस-‌आलाप।
पुष्प-सेज पर रहे बिराजित, उमग्यौ आनँद-सिंधु अमाप॥