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कलम बोलऽ हई / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
मन जब दोलऽ हइ
सत पथ पर राही के
कलम बोलऽ हइ
अप्पन सिपाही के
सूतल सिपाही के
कलम जब जगावऽ हइ
मातल हिरदा में
टीस जब सुलगावऽ हइ
गीत लिखा हे धधकल युग हाही के
रह-रह मड़रा हइ कइसन करिया बादर
हइ अउकात केकरा
तोर करइ निरादर
सच्चाई आव दे
देखलूं हे तानाशाही के
मीठ जहर फइलइले
बिखधर के पोवा हे
नीचे में स्वारथ
ऊपर आन्ही बिंछोवा हे
चीन्ह ला मिठ मोहनी
असल जरलाही के
कलम साधक के
जब-जब चेतऽ हइ
दिव्य ज्ञान किरिन अन्हार के मेटऽ हइ
समय चूमऽ हइ
अइसन परछाही के।