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कहते वर्डस्वर्थ प्रकृति का कवि है, खुला गगन / विजेन्द्र

कहते वर्डस्वर्थ प्रकृति का कवि है, खुला गगन
है, झीलों, फूलों, चिड़ियों और बादल का
ऐसा गायक अचरज छबि है उसकी- मगन
है, लख मेघधनु- हो जाता पाग़ल- उसका

शिशु जो लहरे सागर- हैं चितवनें न्यारी
पकड़ रहा कंप, गूँज थर-थर है पत्ती, गाकर
एकांत क्षणों में उमगी डैफ़ोडिल क्यारी
याद आ गई पर्वत बाला आहटें पाकर

खेत काटती एक अकेली अवसाद भरा
मन में ऐसा कुछ गाती है, अनुगूँज भरी
पटती घाटी आरोही लहरों से, हरा
क्या भीतर अकुलाता, चेतना जो निथरी

है, ऐसी उसकी रचना जो देखा कहा
आघातों से जीवन में जो आया सहा।