भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदित क्षितिज पर / विजेन्द्र
Kavita Kosh से
उदित क्षितिज पर
रचनाकार | विजेन्द्र |
---|---|
प्रकाशक | किताबघर, 24, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 |
वर्ष | 1996 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | सॉनेट |
पृष्ठ | 144 |
ISBN | 81-7016-310-2 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- कवि कर्म निभाना बहुत कठिन होता है / विजेन्द्र
- विश्व जल रहा, नहीं दिखाई देता आगे / विजेन्द्र
- खुली डाल पर खिला फूल है / विजेन्द्र
- जो कुछ देखा, चित्र रच गया कहीं / विजेन्द्र
- मुझे ख़रीदो मैं सस्ता हूँ । मुझको बेचो-- तुम / विजेन्द्र
- कानों को आनंद दिया करता है / विजेन्द्र
- महाकाल की वक्र डाल पर खिला हुआ है / विजेन्द्र
- नहीं सीख पाया मैं कहना ठकुरसुहाती / विजेन्द्र
- नहीं कहा जाता वह जिसको मन करता है / विजेन्द्र
- मेरे पास बैठ कर खेल-खेल में-- रचा नाम / विजेन्द्र
- रामसनेही खड़ा ठेल पर बेच रहा / विजेन्द्र
- एक बीज से अंकुर फूटा, बना / विजेन्द्र
- फूँके घर फूँस-फाँस के, जला दिए बच्चे कच्चे / विजेन्द्र
- झरे फूल, झरते हैं, झरने को कुछ थामें / विजेन्द्र
- ऐसे सूखे में भी खिला हुआ है दिनका / विजेन्द्र
- पका आम नबता है--देखा है जिसने, चाहा / विजेन्द्र
- तुम हो मेरा जीवन--अर्थ भरो गति छंदों में / विजेन्द्र
- रोज़ सुबह बादल होते, छट जाते, आते / विजेन्द्र
- गिरा डाल से पत्ता सूखा / विजेन्द्र
- यह जग माया जैसा जो हर क्षण करता / विजेन्द्र
- बाँध न पाऊँगा कविता को / विजेन्द्र
- जो सौन्दर्य प्रतिमान रचे हैं / विजेन्द्र
- फूल रोहिड़ा जब पहले-पहले देखा / विजेन्द्र
- भरी दोपहरी पजर रही है रेत पाँव तर / विजेन्द्र
- भला तुम्हारा राम राज है, घोड़े गधे / विजेन्द्र
- जब-जब हृदय मनुष्य का हुआ रिक्त / विजेन्द्र
- तुम से बातें करता हूँ हर पल / विजेन्द्र
- पँख पसारे जाते पाँखी / विजेन्द्र
- कठिन समय है मन उदास है / विजेन्द्र
- छोटी आँट पड़ी घबराता / विजेन्द्र
- जिसे कह रहे तुम कुरूप है / विजेन्द्र
- इतना सारा रक्त घिर रहा-- / विजेन्द्र
- तुम्हें किस ऋतु से नपा-नपा कर / विजेन्द्र
- कहाँ दिखाऊँ किसको बोलूँ / विजेन्द्र
- कण-कण से भरता है सागर / विजेन्द्र
- नहीं रोक पाया नरमेध हो रहा / विजेन्द्र
- वृक्ष रोहिड़ा अद्भुत्त खिला हुआ है / विजेन्द्र
- मारे जाते जो अबोध हैं / विजेन्द्र
- आया फिर उन्हीं-उन्हीं के बीच जिन्हें / विजेन्द्र
- धरती खोदी पौध लगा दी / विजेन्द्र
- घनी उदासी मन में गहरी बैठी-- फिर भी / विजेन्द्र
- नाम अनाम घासों का पर रूप अनोखा है / विजेन्द्र
- बहुत दिनों के बाद फूली देखी सरसों / विजेन्द्र
- वहाँ उगेगा उर्वर पौधा / विजेन्द्र
- जब कोई कहीं नहीं होता है / विजेन्द्र
- सुबह-सुबह घना कुहासा था बाहर / विजेन्द्र
- कहते हैं कठिन समय है कविता को भारी / विजेन्द्र
- राम राम जो चिल्लाते हैं, भक्त नहीं हैं / विजेन्द्र
- कभी-कभी उदास होकर भी बहलाते हैं / विजेन्द्र
- गया वसंत । नहीं दिखी खिले अनंत की टहनी / विजेन्द्र
- श्याम लता को देखा उगते बढ़ते खिलते-- / विजेन्द्र
- प्यार तुम्हारा रिक्त भर रहा मेरा हर पल / विजेन्द्र
- कहते वर्डस्वर्थ प्रकृति का कवि है, खुला गगन / विजेन्द्र
- लाए घायल को । क्या हुआ-- सब अचरज से बोले / विजेन्द्र
- गणतंत्र दिवस पर लौट-लौट कर जाते अपने / विजेन्द्र
- मैं गान सुन रहा लिए उदासी ढली सदी / विजेन्द्र
- नहीं किसी से कभी कहा मैंने अपना दुख / विजेन्द्र
- शीत लहर चलती है पूरे उत्तर भारत में / विजेन्द्र
- नया वर्ष आया मन क्लांत भारी है / विजेन्द्र
- इतनी सुंदर है यह दुनिया फिर भी / विजेन्द्र
- लोक वही जो मेरे बाहर है क्रियाशील / विजेन्द्र
- चाह रहा हूँ खड़ा रहूँ धारा के विरोध में / विजेन्द्र
- धूप सुनहली पड़ती पौदों पर / विजेन्द्र
- सूर्य उदय देखा नित झारखंड पर, आभा / विजेन्द्र
- जो भी आता, आँखों में है लिए वक्रता / विजेन्द्र
- देख रहा हूँ अच्छा घर है, अच्छा खाना / विजेन्द्र
- बड़े-बड़े दिग्गज देखे गिरते धरती पर / विजेन्द्र
- पग-पग धरती अब औंढ़ी दिखती है / विजेन्द्र
- देखा अजब डौल है दुनिया का जब तक / विजेन्द्र
- ऐसा नहीं कभी होता है जो पेड़ रचा / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र
- / विजेन्द्र