राम-राम जो चिल्लाते हैं, भक्त नहीं हैं
कहते हैं हमें क्या मंदिर मस्जिद से, चाहिए
हमें तुरफ़ राम की जो न कटे, कहीं है
कोई जो सिद्ध करे यह मस्जिद है, कहिए
उनसे तब कितने म,अंदिर ढाए अतीत में
उनका हिसाब लेना है । मथुरा काशी
में भी चेतन रहना है । सोए अतीत में
रहें हम सभी, अब हिन्दुत्व जगा है, राशी
धन की छिपी सत्ता में हमको दिखती है
कैसे दिल्ली पहुँचें, अब तक समझ न प-आए
अँधकार में रहे भटकते, यह दिखती है
सही सलामत कुंजी हमको कीर्तन गायें
सब मिलकर बस मंदिर यहीं बनेगा, न बने
चाहे, जाए भाड़ में हिन्दू- अपनी भंग छने ।