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कहाँ से चेहरा सँभलता / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

हाँ, समय के साथ हर चेहरा बदलता
 
ये हमारी झुर्रियों के तले भी
चेहरे कई हैं
आयनों में नहीं दिखते
आँख के रँग सुरमई हैं
 
इन दिनों सूरज नहीं खुलकर निकलता
 
वक्त के पिछले सिरे पर
हँस रहा है एक बच्चा
और उसके ज़रा आगे
है खड़ा इक युवा सच्चा
 
जो ज़रा-सी बात पर कल था बिगड़ता
 
समय का देखें करिश्मा
उगा सूरज और डूबा
और उसके साथ ही
बूढ़ा हुआ मन और ऊबा
 
उम्र गुज़री - कहाँ से चेहरा सँभलता