भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहो शाश्वत- दो / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहो शाश्वत!
यह तुम्हारा स्कूल कैसा है
 
क्या यहाँ पर
रात-बीते धूप आती है
पेड़ हैं क्या
जहाँ कोयल गीत गाती है
 
क्या तुम्हें है पता
ताज़ा फूल कैसा है
 
क्या यहाँ आकाश-धरती
एक होते हैं
गिने तुमने कभी
कितने जोड़ तोते हैं
 
दिखा तुमको
पोत पर मस्तूल कैसा है
 
यहाँ बैठे इस गुफा में
कर रहे तुम क्या
सुनो शाश्वत!
यहाँ सपनों की हुई हत्या
 
बनो 'कंप्यूटर'
यहाँ का 'रूल' ऐसा है