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कहो शाश्वत - एक / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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कहो शाश्वत!
तुम यहाँ चुप क्यों खड़े हो
 
उधर देखो
ला रहे हैं नया युग
पापा तुम्हारे
इधर अगले मन्त्र
अंदर नया 'इंटरनेट' उचारे
 
अरे शाश्वत!
तुम सुपर-कंप्यूटरों के आँकड़े हो
 
यहाँ खिड़की-पार
क्या तुम देखते
पिछले समय को
सुन रहे या दूर से आती
किसी संगीत-लय को
 
सुनो शाश्वत!
तुम हमारे हर मसीहे से बड़े हो
 
यों खड़े मत रहो
जाओ पढ़ो
'टेली'-पोथियों को
और सीखो तुम लगाना
नये युग की गोटियों को
 
यहाँ शाश्वत!
मुफ्त के किन चक्करों में तुम पड़े हो