भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहौ तुम्ह बिनु गृह मेरो कौन काजु? / तुलसीदास
Kavita Kosh से
(7)
कहौ तुम्ह बिनु गृह मेरो कौन काजु ?
बिपिन कोटि सुरपुर समान मोको, जो पै पिय परिहर्यो राजु ||
बलकल बिमल दुकूल मनोहर, कन्द-मूल-फल आमिय नाजु |
प्रभुपद-कमल बिलोकिहैं छिन-छिन, इहि तें अधिक कहा सुख-समाजु ||
हौं रहौं भवन भोग-लोलुप ह्वै, पति कानन कियो मुनिको साजु |
तुलसिदास ऐसे बिरह-बचन सुनि कठिन हियो बिदरो न आजु ||