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कहौ तुम्ह बिनु गृह मेरो कौन काजु? / तुलसीदास

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कहौ तुम्ह बिनु गृह मेरो कौन काजु ?

बिपिन कोटि सुरपुर समान मोको, जो पै पिय परिहर्यो राजु ||

बलकल बिमल दुकूल मनोहर, कन्द-मूल-फल आमिय नाजु |

प्रभुपद-कमल बिलोकिहैं छिन-छिन, इहि तें अधिक कहा सुख-समाजु ||

हौं रहौं भवन भोग-लोलुप ह्वै, पति कानन कियो मुनिको साजु |

तुलसिदास ऐसे बिरह-बचन सुनि कठिन हियो बिदरो न आजु ||