भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कागज के गज / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
कागज के गज
गजब बढ़े;
धम-धम धमके
पाँव पड़े,
भीड़ रौंदते हुए कढ़े।
ऊपर
अफसर
चंट चढ़े,
दंड दमन के
पाठ पढ़े।
रचनाकाल: २६-०८-१९७८