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कानन नव निकुंज अति सोहनि / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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कानन नव निकुंज अति सोहनि।
कुसुमित लता सुगंध-समन्वित सुर-मुनि-जन-मन-मोहनि॥
नव-पल्लव सोभित कदंबकी साखा परम बिसाल।
तेहि पर सुक-सारिका-पिकादिक गावत राग रसाल॥
तहाँ सुदिय सुरय हेम-मनि-मंडित झूला डारी।
रसमय रहे बिराज नंद-नंदन-बृषभानु-दुलारी॥
ब्रज-रमनी सब देयँ झकोरे प्रियतम-प्रिया झुलावत।
रूप-सुधा-सागर-तरंग-सी मिलि सब मोद बढ़ावत॥
रस-प्रमा झूलत नव नागरि तुरत परन-सी लागी।
पकरि भरी अँकवार स्याम-घन प्रेम-सुधा-रस-पागी॥
राधा-मोहन, मोहन-राधा भ‌ए एक आकारा।
बिहँसि उठीं सब व्रज की बाला, बही अमी-रस-धारा॥