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कामनाओं का राग / वाज़दा ख़ान

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अमृता शेरगिल की दो नायाब
कृतिया~म तोहफ़े-सी आती हैं
मेरे पास, केशों में बुरूँश के
फूल लगाए होंठों पर तितली
लिए बैठ जाती हैम आकर
समीप मेरे

खिल खिल करती हैं वे परस्पर
उड़ पड़ती हैं तितलियाँ होंठों से उनके
करती हैं निरन्तर परिक्रमा

देह से उपजे धुँधलके में
सराबोर हो जाता है पूरा ब्रह्माण्ड
पंखों में उगे इन्द्रधनुषीय रंगों से
तब आत्मा की अनन्त
गहराइयों में बजता है कामनाओं
का राग कि
उन पंखों से अपनी पसन्द के
कुछ रंगों को लेकर जिजीविषा के
विशाल कैनवस पर लगाऊँ
बुरूँश के फूलों की कूँची बनाऊँ
चित्रित करूँ एक इतिहास, फिर
गर्भ से उसके यथार्थ जीवन
निकाल कर सृजित करूँ वर्तमान

जो तय करेगा भविष्य की
सीमारेखा ।