और सच की राह पर चलता रहा।
ज़िन्दगी की दासतां किससे कहें,
हर समय खुद से ही मैं डरता रहा।
न्याय का दामन कभी छोड़ा नहीं,
डाँट अपनों की मगर सहता रहा।
बेखुदी तो थी नहीं मुझ में कभी,
इसलिए गम ही सदा डसता रहा।
हर समय हलकान अपनों से रहा,
अपनी कमियों से सदा लड़ता रहा।