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काम यही है शाम सवेरे / 'कैफ़' भोपाली

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काम यही है शाम सवेरे
तेरी गली के सौ सौ फेरे

सामने वो हैं जुल्फ बिखेरे
कितने हसीं है आज अँधेरे

हम तो हैं तेरे पूजने वाले
पाँव न पड़वा तेरे मेरे

दिल को चुराया ख़ैर चुराया
आँख चुरा कर जा न लुटेरे