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कालिमा मिट गयी चाँदनी हो गयी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
कालिमा मिट गई चाँदनी हो गयी।
दुग्ध स्नाता धवल यामिनी हो गयी।।
शीत का अब सताना तनिक कम हुआ
दोपहर धूप भी गुनगुनी हो गयी।।
खिल उठे फूल चारो तरफ इस तरह
मुग्ध दृश्यावली मधुबनी हो गयी।।
दिख रही है धरा पीत श्रृंगार में
ऋतु स्वयं काम की कामिनी हो गयी।।
श्याम की बाँसुरी बज रही रात में
मान की कोकिला रागिनी हो गयी।।
व्यस्त इतना हुए जिंदगी थम गयी
हर कथा अनकही अनसुनी हो गयी।।
पीर चुभती रही कंटकों सी मगर
घिर नयन में घटा सावनी हो गयी।।