भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसीकी शबनमी आँखों में झिलमिलाये हुए / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


किसीकी शबनमी आँखों में झिलमिलाये हुए
एक अरसा हो गया फूलों की चोट खाये हुए

किया है प्यार बिना देखे भले ही उनसे
हम उस गली में न जायेंगे बेबुलाये हुए

करोगे याद भी हमको हमारे बाद कभी
अभी जो छोड़ के जाते हो मुँह फिराये हुए

मुकाम ऐसे भी आये हैं ज़िन्दगी में कई
हम अपना समझे थे जिनको वही पराये हुए

भले ही तेज हो आँधी, बचाके रख लो इन्हें
न जल सकेंगे कभी फिर दिए बुझाये हुए

सिवा गुलाब के रंगत है किसकी लाल यहाँ!
बहुत हैं देखे जलाये हुए, सताये हुए