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किसी अन्याय के आगे झुकेगी अब नहीं नारी / बाबा बैद्यनाथ झा
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किसी अन्याय के आगे झुकेगी अब नहीं नारी
बनी सबला, कभी अबला रहेगी अब नहीं नारी
गृहस्थी का सभी बोझा सदा ढोती रही महिला
उसे तुम तंग मत करना सहेगी अब नहीं नारी
उदर में ढो रही माता सदा संतान को अपनी
पिला कर दूध छाती का डरेगी अब नहीं नारी
पढ़ाई में सदा आगे कमाई में रहे आगे
किसी की धौंस अब सहकर जिएगी अब नहीं नारी
शुरू से सह रही नारी पुरुष के क्रोध की पीड़ा
मगर अब दे रही उत्तर हटेगी अब नहीं नारी
वहाँ ससुराल में जाकर जलायी जा रही अक्सर
सँभल जा जग गई बेटी जलेगी अब नहीं नारी
उलझ रंगीन बातों में मिला है मात्र आश्वासन
यकीं अब इस तरह तेरा करेगी अब नहीं नारी
शमन हित देख यह ‘बाबा’ उठेगी जब बनी काली
पुनः हर व्यूह के अंदर फँसेगी अब नहीं नारी