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किसी को सर चढ़ाया जा रहा है / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
किसी को सर चढ़ाया जा रहा है
कोई रक्तन रुलाया जा रहा है
ये आँखें आधुनिक दिखने लगेंगी
नया सपना मंगाया जा रहा है
जो पहले से खड़ा है हाशिए पर
वही बाएँ दबाया जा रहा है
कथाओं में नहीं अंट पा रहा जो
उसे कविता में लाया जा रहा है
बुजुर्गों ने जिसे पोसा है अब तक
वो रिश्ता अब भुनाया जा रहा है
हमारे बीच में जो अनकहा था
वो शब्दों से मिटाया जा रहा है
मैं कुर्बानी का बकरा तो नहीं हूँ?
बड़ी इज्जत से लाया जा रहा है