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किसी ने अपना बनाके मुझ को मुस्कराना सिखा दिया/ शैलेन्द्र

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किसी ने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया
अँधेरे घर में किसी ने आके चिराग जैसे जला दिया

शर्म के मारे मैं कुछ न बोली, नजर ने पर्दा गिरा दिया
मगर वे सब कुछ समझ गए हैं, के दिल भी मैंने गवाँ दिया

न प्यार देखा, न प्यार जाना, सुनी थी लेकिन कहानियाँ
जो ख़्वाब रातो में भी न आया, वह मुझको दिन में दिखा दिया

वे रंग भरते हैं ज़िन्दगी में, बदल रहा हैं मेरा जहां
कोई सितारे लुटा रहा था, किसी ने दामन बिछा दिया