किसी ने भी छीना नहीं / मरीना स्विताएवा
किसी ने भी कुछ नहीं छीना मेरे हाथों से-
अच्छा लगता है मुझे हमारा अलग-अलग रहना ।
चूमती हूँ मैं तुम्हें
इस सौ-सौ मील दूर के फ़ासले से ।
जानती हूँ बराबर नहीं है हमारी प्रतिभा,
पहली बार आज चुप है मेरी आवाज़ ।
क्या महत्त्व तुम्हारे लिए, ओ युवा देर्झाविन,
मेरी इन गँवार कविताओं का !
दुआ मांगती हूँ तुम्हारी इन डरावनी उड़ान के लिए
उड़ान भरो, ओ मेरे युवा बाज !
चौंधियाईं नहीं तुम्हारी आँखें सूर्य के आगे,
चौंधिया जाएंगी क्या वे मेरी युवा नज़र के सामने !
इतनी अधिक कोमलता, इतनी अधिक ख़ामोशी से
किसी ने भी नहीं देखा तुम्हें पीछे से...
चूमती हूँ तुम्हें
इस सौ-सौ वर्ष दूर के फ़ासले से ।
देर्झाविन, गव्रील रमानोविच (1743-1816), प्रख्यात रूसी कवि
रचनाकाल : 12 फ़रवरी 1916
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह