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कि जिनके लिए हम जिए जा रहे हैं / मृदुला झा

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वही मुझको रुसवा किए जा रहे हैं।

न जाने मुहब्बत का अंजाम क्या हो,
ज़हर जिनकी खातिर पिए जा रहे है।

मैं करता हूँ शिकवा न कोई शिकायत,
वो तोहमत पे तोहमत दिए जा रहे है।

यूँ कहने को दिल में बहुत कुछ है लेकिन,
हम अपने लबों को सिये जा रहे हैं।

‘निगहबान’ बनकर वो सारे जहाँ के,
‘मृदुल’ दर्दो-गम भी पिए जा रहे हैं।