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कुछ और गवा लो गीत, मीत! / रामगोपाल 'रुद्र'
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गाने ही दो मुझको, भरसक;
यह कंठ मिलाने की बेला आँखों में ही मत जाय बीत!
जागी है जबतक मोमशिखा,
नभ पर है आँसू-लेख लिखा,
इन जलते छन्दों में ही प्रिय! दुहराने दो गीला अतीत!
बस, ऐसे ही झाँकते रहो,
लहरों पर छवि आँकते रहो
जब तक न तुम्हारा दाग धुले, मेरा स्वर-सिन्धु न जाय रीत!