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कुछ और बोल दो / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
कुछ और शब्द बोल दो
ताकि मैं एक जीवित
कविता बना लूं
वैसे तो तमाम शब्द हैं किताबों में
मगर उनमें वो बात कहां
वे तो मृत हैं.
मुझे बनानी है एक
जीवित कविता
उसके शब्द
तुम्हारे ही मुख से झरेंगे
तभी तो सांस ले सकेगी
सुकून पा सकेगी कविता.
कई बार ऐसा होता है कि
तुम्हारे मुख से झरते शब्द
झरने में बहती लहरों सा
जुड़ने लगते हैं
और उस वक्त मेरे पास
कागज-कलम नहीं होती
उन शब्दों को हृदय में कैद भी
नहीं कर पाती
चढ़ जाती है उस पर
समय की परत
खोने लगते हैं वे
अपना रूप और
बचती है सिर्फ आजीवित देह.